सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

अपने-अपने खुदा

गुलमोहर की छांव तले नींद के आगोश में था
तभी "जयऽऽऽ शनि महराज" के उद्दघोष से नींद टूटी
देखा तो एक व्यक्ति तेल से अधभरे पात्र में
लौह प्रतिमा रखे खड़ा है।
तेल में कुछ सिक्के डूबे हुए थे
उसका मंतव्य समझ
उसे एक सिक्का देकर विदा करता हूं।
पुनः आंखे बन्द करता हूं,
तभी "याऽऽऽऽ मौला करम" की आवाज़ चौंकाती है
देखता हूं एक फकीर मुट्ठी भर अंगारों पर
लोबान डाल मेरी बरकत की दुआएं मांग रहा है,
उसे भी एक सिक्का देकर रूख़सत करता हूं।
फिर से आखें बन्द करता हूं
पर नींद तो किसी रूठी प्रेमिका
के मानिंद आने से रही;
सो घर की ओर चल पड़ता हूं।
"सिटी-बस" में बरबस ही नज़र
नानक देव की तस्वीर पर जा टिकती है।
मन विचारों से अठखेलियां करने लगता है।
सोचता हूं संसार में खुदा के कितने रूप हैं,
किसी के लिए उसका काम खुदा है;
किसी के लिए उसका ईमान,
किसी के लिए राम खुदा है;
किसी के लिए रहमान,
किसी के लिए घूंघर की झन्कार खुदा है;
किसी के लिए उसकी तलवार,
किसी के लिए पैसा खुदा है;
किसी के लिए प्यार,
इसी ऊहापोह में बस-स्टाप आ जाता है
उतरते वक्त निगाहें कंडक्टर के गले में
लटके "क्रास" पर अटक जातीं हैं।
सोच रहा हूं कि खुदा तो एक ही है
और वह हम सबके अन्दर है,
फिर लोगों ने क्यूं गढ़ रखे हैं
अपने-अपने खुदा...!

-हेमन्त रिछारिया

रविवार, 17 फ़रवरी 2013

मुख्यमंत्रीजी के साथ

डा. धर्मेंद्र सरल (सरलजी के पुत्र) व सीएम के साथ-

चमत्कार

एक सुबह डाकिए ने हमारा द्वार खटखटाया
द्वार खुलते ही उसने एक लिफाफा हमें थमाया
लिफा़फ़े को खोलकर हमने जैसे ही ख़त को पढ़ा
हमारा दिमाग सच मानिए सातवें आसमान पर चढ़ा
लिफाफे में नौकरी हेतु "बुलावा-पत्र" था
जाना अगले ही सत्र था।
ये सोचकर कि खुशखबरी पड़ोसी शर्माजी को सुनाएं
वो ज्योतिषी हैं शायद आगे का हाल बताएं।
सो हम झट जा पहुंचे शर्मा जी के घर,
खटखटाया उनका दर।
प्रणाम करके हमने फरमाया,
नौकरी हेतु "बुलावा-पत्र" है आया।
ज़रा पत्री देखकर बताईए
क्या है ग्रहों की माया।
शर्मा जी ने ऐनक चढ़ा;पत्री को जांचा,
फिर हमारी ओर देख के फलित बांचा।
कहा-"कविवर! समझ लीजिए इतना ग्रह दशा का सार
कुछ दिनों में होगा कोई ना कोई चमत्कार।
इतना सुनते ही हमारे चेहरे की रंगत खिली,
ऐसा लगा मानो जैसे अंधे को दो आंखें मिलीं।
हमने सोचा कि जब "चमत्कार" ही होना है,
फिर व्यर्थ क्यूं परेशां होना है।
इतना विचार करते ही
"बुलावा-पत्र" दिया फाड़;
फिर झाड़ू से दिया झाड़,
और करने लगे "चमत्कार" का इंतज़ार।
जब महीनों में भी कुछ परिवर्तन ना आया,
व्रतान्त सुना शर्माजी को तीखे स्वर में फरमाया-
यूं मिथ्या भाषण करते लाज ना आपको आई,
पड़ोसी होकर आपने हम पर गाज गिराई।
हमारे क्रोध का ना हुआ उन पर कोई असर,
अत्यंत शान्त स्वर में उन्होंने दिया उत्तर,
कहा-"कविवर! मिथ्या भाषण हमने ना
जीवन में कभी किया है;
ना ही झूठा आश्वासन कभी किसी को दिया है,
और रही बात चमत्कार की; वह तो हो चुका,
इस मंहगाई के दौर में जो आजीविका ठुकराए,
आप ही कहें क्या इसे "चमत्कार" कहा ना जाए।

-हेमन्त रिछारिया

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

हाइकु

नहीं रहेंगे
हमेशा खाली हाथ
लगाओ गोता

मिलती कहां
दिली आपसदारी
है आजकल

तुझे देखते
आंखे नहीं अघातीं
चांद चेहरा

 ज़ुबानी घोड़ा
है सरपटा दौड़ा
खींचो लगाम

मन है चंगा
तो कठौती में प्यारे
मिलेगी गंगा

ऐसे मनाएं
अबके गणतंत्र
सुधारें तंत्र

लगा दो मुझे
प्रियतम अपने
प्रेम का इत्र

क्या था बनाया
समझ नहीं आया
"मार्डन-आर्ट"

-हेमन्त रिछारिया

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

किसको डालूं वोट..

किसको डालूं वोट रामजी
सब में ही है खोट रामजी
किसको डालूं वोट...

वादों की भरमार है देखो
लूटा सब संसार है देखो
लोकतंत्र की मर्यादा पर
करते कैसी चोट रामजी
किसको डालूं वोट.....

नकली-नकली चेहरे हैं
राज़ बड़े ही गहरे हैं
सबने अपने मुखमंडल पे
डाली तगड़ी ओट रामजी
किसको डालूं वोट....

आज़ादी के खातिर देखो
कितने फांसी पर झूले
सत्तालोलुपता में नेता
वो कुर्बानी भूले
ऐसी बातें दिल को
मेरे रही कचोट रामजी
किसको डालूं वोट...

कवि-हेमंत रिछारिया

किरदार

संसार में राजा-रानी के
किरदार निभाए जाते हैं
माटी के घरौंदे हैं लेकिन
सब महल बताए जाते हैं।

अवसर था वो बीत गया
मधुघट तेरा रीत गया
लो मौत खड़ी है द्वारे पे
अब क्यूं पछताए जाते हैं।