गुरुवार, 22 अगस्त 2013

पानी सर ऊपर है

कछु करो अब नाथ,
पानी सर ऊपर है।
छूटे हाथ से हाथ,
पानी सर ऊपर है॥

डूबी गाड़ी; डूबी गैल,
डूबा हमरा कबरा बैल।
कछु ना आयो हाथ,
पानी सर ऊपर है॥

बह गए सारे ढ़ोना-टापर,
तितर-बितर भई है बाखर।
भए बच्छा-बच्छी अनाथ,
पानी सर ऊपर है॥

घनन-घनन-घन गरजे बदरा,
उमड़-घुमड़ के बरसे बदरा।
बिजुरिया चमके साथ,
पानी सर ऊपर है॥

-हेमन्त रिछारिया

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

यार, हम कहां आ गए

बीते 67 साल यार,
हम कहां आ गए।

होती बड़ी निराशा है,
ना ही कोई दिलासा है।
कैसे बचाएं वतन अपना
सियासी दीमक खा गए॥
बीते 67 साल यार, हम कहां आ गए।

गहन तिमिर का घेरा है,
घोर निशा का डेरा है।
कैसे फैलेगी अरूणिमा
काले मेघ जो छा गए॥
बीते 67 साल यार, हम कहां आ गए।

पतनोन्मुख हुई व्यवस्था है,
हालत हो रही खस्ता है।
लक्ष्य विकास के सारे
आंकड़ों ही से पा गए॥
बीते 67 साल यार, हम कहां आ गए।